Monday 3 February 2014

"शर्मशार इंसानियत "

जब देश गणतंत्र दिवस कि तैयारियों में मस्त था ,उसी समय पश्चिम बंगाल के बीरभूम में एक बेटी कि इज्जत को बेआबरू किया जा रहा था।                                                                                                               उसके साथ ऐसा बर्ताव सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि  उसका कसूर सिर्फ इतना था कि ,उसने दूसरी जाति के लड़के से शादी कर ली थी। पंचायत के निर्देश पर उस युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया ,जिसने एक बार फिर इंसानियत को शर्मशार कर दिया। किस कानून में इस तरह कि सजा का प्रावधान है ?   और ऐसी सजा सुनाने का हक़ पंचायत को किसने दिया । सचमुच बीरभूम कि इस पंचायत ने तो गणतंत्र के मायने ही बदल दिए। जिस देश कि महिलाओं को कभी सती , सावित्री  का दर्ज दिया जाता था , आज उस देश कि महिलाए और बेटियां कही भी सुरक्षित नहीं है , स्त्री समाज का जीवन नारकीय बन गया है , वह भी चंद समाज के ठेकेदारों कि वजह से।  आखिर किसी भी लड़की के दामन पर दाग लगाने का हक़ इन जैसे लोंगो को किसने दिया है ?                                                       इस तरह कि घटना देख सुन कर लगता है कि ,भारत में भी तालिबानी संस्कृति पनप रही हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए इस तरह कि पंचायत और अपराधियों पर अंकुश लगाने कि सख्त जरुरत है। ऐसी घटनाएं हमारे लोकतंत्र और इंसानियत को बदसूरत बनाती हैं। पश्चिम बंगाल अपनी संस्कृति और परम्परा के लिए जाना जाता था,लेकिन आज हालात कुछ और हैं ,आए दिन यहा कोई न कोई घटना होती है। जिससे ऐसा लगता है कि यहां भी अपराधियों के हौसलें बुलंद होते जा रहे हैं,इस घटना ने सरकार और पुलिस प्रशासन पर प्रशन चिन्ह लगा दिए हैं।                                                                                                                               सुगंधा झा    

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