Tuesday 11 February 2014

मुज्ज़फरनगर का दर्द

जलता रहा मुज्ज़फरनगर मरते रहे लोंग ,सभी पार्टी के नेता अफसर  तमाशबीन बनकर सबकुछ देखते रहे। लोंगो को शांत करने के बजाय तमाम नेता जी भड़काऊ भाषण देते रहे ,जिससे दंगा और भडका ,कई गॉव तबाह हुआ ,कितनी मौतों हुई,उस पर भी हमारे देश के नेता राजनितिक रोटिया सेकने से बाज नहीं आए। दंगो को शांत करने के बजाय राज्य और केन्द्र  सरकार एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहे ,अभी भी मामले को निपटाने के बजाय उत्तर प्रदेश कि सरकार कि तरफ से कोई ठोस कदम उठते दिखे नहीं ,बल्कि इतने समय बीतने के बाद भी हजारों लोंग अपने छोटे बच्चों को लेकर ठण्ड में मरने को तैयार है ,लेकिन खौफ के चलते अपने घर लौटना नहीं चाहते ,उस पर नेताजी का बेतुका बयान कि , यह लोग विपक्षी पार्टियों के भेजें हुए हैं ,या पाँच  सात लाख मुआवजे के चलते यहा रह रहे है ,कोई नेताजी से यह सवाल पूछता  कि इतनी ठण्ड में  इंसान पैसे के लिए अपनी और अपने बच्चों कि जान के साथ खिलवाड़ क्यों करेगा ? साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्य  सचिव का कहना कि ठण्ड से मौतें होती तो साइबेरिया में कोई नहीं बचता। सचिव साहब सबको पता है, कि ठण्ड से मरने के लिए साइबेरिया जाने  कि जरुरत नहीं है, क्योकि ठण्ड से सबसे ज्यादा मौतें उत्तर भारत में ही होती हैं। जिसमे मौत का अकड़ा उत्तर प्रदेश का सबसे ज्यादा है ,आखिर कैसे हमारे देश के नेता अफसर इतने संवेदनहीन हो जाते हैं ,आम लोंगो कि समझ से परे हैं। जो नेता चुनती है कि ,वह उनका नेतृत्व करेगा ,कुर्सी मिलते ही नेताजी जनता को कुछ नहीं समझते हैं ,हर कदम पर जनता कि उपेक्षा करते है।जहा उत्तर प्रदेश सरकार को मुज्ज़फरनगर को दोबारा बसाना चाहिए था ,वहा नेताजी सैफई में महोत्सव मना रहे थे ,मंत्रियो के  विदेश दौरे पर पैसा लगा रहे थे। यही सरकार प्रदेश के विकास के लिए फण्ड का रोना रोती रहती है। उत्तर प्रदेश में यह कौन सा समाजवाद है समझ नहीं आता हैं। 

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