युवा मुख्यमंत्री के शासन में उनके अपने ही कार्यकर्ता बेलगाम हो गये ,जिसके चलते राज्य में गुंडागर्दी बढ़ी हैं।
स्थिति यह है कि अधिकतर अपराधों के तार किसी न किसी रूप से सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़ते हैं।कभी मुजफ्फरनगर में दंगे तो कभी गन्ना किसानों का आक्रोश ,दंगे के बाद जब हल्ला मचा तो कुछ नेताओं को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। लेकिन यहा भी प्रदेश सरकार ने पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाया। अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई ठोश कदम नहीं उठाए।
दंगा पीड़ितो को रहत मिले न मिले ,लेकिन सूबे कि सरकार को सैफई में महोत्सव करना जरुरी था ,तो आधे दर्जन से ज्यादा नेता विदेश दौरे पर रवाना हुए। आज़म खा साहेब कि भैंसे गुम हुई, तो प्रदेश के मंत्री साहेब ने s.h.o को लाइन हाज़िर कर दिया।
हाल ही में सपा विधायक (इरफ़ान सोलंकी )कि मेडिकल छात्रों के साथ हाथापाई हुई ,तो सरकार ने जांच का हवाला दिया।
जिसकी वजह से डॉक्टरों कि हड़ताल हुई ,तीन दर्जन से ज्यादा लोग वगैर इलाज बे मौत मर गये ,इसका ज़िम्मेदार कौन हैं ?
मुलायम सिंह हिदायत देते रहते हैं ,अपनी सरकार के मंत्रियों को जो सिर्फ एक दिखावा हैं, और कुछ नहीं।
जनता बेवज़ह ही पुलिस को दोष देती रहती है ,अगर सत्ता ही निरंकुश हो जाए ,तो प्रशासन क्या करेगा ?
भारत जैसे देश के इतने बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में क्या सत्ता का यही मतलब है। आखिर कैसे नेता बनते ही कुर्सी मिलते ही यह लोग इतने संवेदनहीन हो जाते हैं।
आज उत्तर प्रदेश कि जो स्थिति है उस जिम्मेदारी से अखिलेश सरकार खुद को बचा नहीं सकती हैं।
सत्ता नशा का नाम नहीं ,बल्कि ज़िम्मेदारी का नाम हैं।
सुगंधा झा
Bilkul sahi likha hai aapne....uttar pradesh sarkaar pr pratikriya vyakt krne k liye sadhuwaad...
ReplyDeleteThanks aapka Ashul Tiwari ji.yeh meri khud ki soch hai.
Delete