Thursday 3 April 2014

"क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका "


राजनीती में दलों कि बढ़ती संख्या के कारण भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा हैं। आज देश में बड़ी पार्टियों से ज्यादा क्षेत्रीय दलों की संख्या हैं। भारत  के हर राज्य में दो से अधिक क्षेत्रीय दल है ,क्षेत्रीय दलों  की  अहम भूमिका होती है। लोकसभा चुनावों के बाद सरकार बनाने और गिराने में।

2014 के लोकसभा चुनावों  की  स्थिति भी कुछ साफ नहीं दिखती। अभी तक किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने का असार नहीं दिखाई दे रहा है। चुनावों से पहले दोनों पार्टियां क्षेत्रीय दलों से गठबंधन में लगी रहती है ,क्योंकि क्षेत्रीय दलों की अपने राज्यों में काफी अच्छी पकड़ रहती हैं ,और अधिक से अधिक  सीटों पर जीत दर्ज की जा सकें ,देश में समय के साथ क्षेत्रीय दल भी मजबूत होते जा रहे हैं।

क्षेत्रीय दल  राष्ट्रीय दलों को कमज़ोर कर रही है,क्षेत्रीय पार्टियों के मत प्रतिशत में बढ़ोतरी जरुर हुई है।
 लेकिन इनकी सीटों कि संख्या में भी कमी आई  है। क्षेत्रीय दलों  केवल राष्ट्रीय दलों के वोट नहीं काटते बल्कि अन्य पार्टियों के मतों को भी कम करते हैं। 

क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं का युवा वर्ग में काफी क्रेज़ हैं ,क्योंकि यह विकास और नौकरियों की बात करती है। क्षेत्रीय दलों के मुखिया जन समस्याओं को सुलझाने के लिए अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं ,इसलिए वह लोंगो में काफी लोकप्रिय है ,लेकिन एक बात और है कि भारत की क्षेत्रीय पार्टियां विदेश नीति को भी प्रभावित कर रही हैं। 

देश के सबसे बड़े लोकतंत्र में क्षेत्रीय दल मजबूत पार्टियों या स्थिर सरकार देने में रुकावटें पैदा करती हैं। 



::::: सुगन्धा झा 

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