Wednesday 20 November 2013

चुनावी बिगुल

चुनाव  का  समय  नज़दीक  आतें  ही सभी  पार्टियों  को   अपने   चुनावीं  वादें  याद  आते  हैं ।  पिछले  चुनावों में  किए  गए  , वादें  नेताजी   पुरे  नहीं   कर  पातें   हैं ,तब  नया  चुनाव  नए  वादों  के  साथ   मैदान   में  उतर  जाते  हैं । चुनाव  नजदीक  आते  ही  उन्हें  अपनी  जनता ,अपने  क्षेत्र  कि याद  आती  हैं …कोई  नेताजी  जी से  यह  सवाल  पूछे  कि  जब  आप  पाँच साल में  वादें  पूरे  नहीं  कर  पाए  तो  नए  वादे  और पुरानें  वादों   को   मिलाकर  उन्हें   कितना  समय  लगेगा ।क्या   कोई  भी  काम   पूरा करने  के लिए  पांच  साल  बहुत होते  हैं  ?  और  इसी  के साथ  मैदानी  जंग  के  साथ  जुबानी  जंग  तेज़  हो जाती  हैं ,आरोप  प्रत्यारोप  का दौर भी  शुरू  हो जाता है। चुनाव  नजदीक  आते  ही  नेताजी   अपने  इलाकें  कि   सभी  जरुरी  चीजों  कि मरम्मत करवानें  और दौरा  करने में लग जाते हैं। जबकि जीत  के बाद  नेताजी  के दर्शन  दुर्लभ  हो जाते हैं। जनता  अपना नेता चुनती हैं  कि  वह  उसका  नेतृत्व  करें  न  कि  जीत  के  बाद  उनकी  उपेक्षा  हों।                                                                                                                                                               सुगंधा झा      

No comments:

Post a Comment