Saturday 21 September 2013

"गरीबों का मजाक "

क्या केन्द्र की कांग्रेस सरकार गरीबों का मजाक उड़ाने पर अड़ी हुई है. 1977 में कांग्रेस का स्लोगन था गरीबी हटाओ, आज के समय को देख कर लगता है यही लोग चाहते है कि गरीबों को ही हटाओ.

क्या सोच समझ कर ये लोग बोलते हैं कि 27 और 33 रूपए कमाने वाले लोग गरीब नहीं है. क्यों ये गरीब और गरीबों का मजाक बना रहे हैं.

योजना आयोग गांव में 27 रूपए तथा शहर में 33 रूपए से अधिक खर्च
करने वाले लोगों को गरीब नहीं मानता है, इससे कम खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है.

भारत सरकार का दावा है कि 2004 से अब तक देश में गरीबी एक तिहाई कम हुई है, लेकिन क्या सचमुच में यें आंकड़े भरोसा करने लायक हैं.

देश की 21.9 फ़ीसदी आबादी गरीब है, गरीबों की संख्या 26.93 करोड़ है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में 21.65 करोड़ एवं शहरी क्षेत्र में 5.28 करोड़  गरीब हैं.

दुनिया में भूखे लोगों वाले 79 देशों की सूची में भारत 75 वें नंबर पर है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक 2012 में भारत में 21.7 करोड़ लोग कुपोषित थे, सिर्फ इतना ही नहीं पाँच साल से कम उम्र के करीब आधे बच्चे कुपोषित है और यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है.

इसके बाद भी कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि भारत में सरकारी योजनाओं के दम पर गरीबी कम हुई है. आज के समय में 27 और 33 रूपए में क्या आता है, पिछले दिनों माननीय सांसद राशिद मासूद और राजबब्बर ने तो यहां तक कहा कि दिल्ली और मुंबई में 5 और 12 रूपए में भरपेट भोजन मिलता है तो राहुल गाँधी गरीबी को मानसिक अवस्था बताते हैं.

क्या कभी उन्होंने यह सोचा की आज के समय में पाँच रूपए में एक कप चाय नसीब नहीं तो भोजन कहां से मिलेगा, खुद तो ये लोग एक दिन के भोजन पर 7500 रूपए खर्च करते है और लोगों को गरीब न कहलाने को बोलते है.

रही बात खर्च के आधार पर गरीबी को नापने की तो जरुरी चीजों की कीमतें लगातार बढ़ती है जब इन वस्तुओं के मूल्य बढेंगे और आमदनी जस की तस रहेगी तो जाहिर सी बात है गरीबों की संख्या भी बढ़ेगी.

राष्ट्र के 70 करोड़ लोगों के जीवनयापन से जुड़े सवाल को चंद राजनेता लोग मुद्दा बनाकर अपना फायदा उठाते हैं. टिप्पणी करते समय ये लोग अपनी मर्यादा को पार क्यों करते है?

आम जन के समझ से परे है कि हरियाणा के झज्झर में 2009 में बरबाद हुए फसलों के मुआवज़े के रूप में किसानो को 2 और 3 रूपए के चेक दिए गये, सरकार आखिर इससे क्या साबित करना चाहती है. प्रशासन का कहना है कि लोगों को उनकी बरबाद फसल के अनुपात से मुआवज़ा दिया गया है.

आखिर ये लोग क्या साबित करना चाहते हैं. गरीबी न हटा सको तो कम से कम गरीबों का मजाक तो मत उड़ाओ. अब तो ऐसा लगता है भारत में गरीब कहलाना ही शर्म की बात है.


क्या केन्द्र की कांग्रेस सरकार गरीबों का मजाक उड़ाने पर अड़ी हुई है. 1977 में कांग्रेस का स्लोगन था गरीबी हटाओ, आज के समय को देख कर लगता है यही लोग चाहते है कि गरीबों को ही हटाओ.

क्या सोच समझ कर ये लोग बोलते हैं कि 27 और 33 रूपए कमाने वाले लोग गरीब नहीं है. क्यों ये गरीब और गरीबों का मजाक बना रहे हैं.

योजना आयोग गांव में 27 रूपए तथा शहर में 33 रूपए से अधिक खर्च
करने वाले लोगों को गरीब नहीं मानता है, इससे कम खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है.

भारत सरकार का दावा है कि 2004 से अब तक देश में गरीबी एक तिहाई कम हुई है, लेकिन क्या सचमुच में यें आंकड़े भरोसा करने लायक हैं.

देश की 21.9 फ़ीसदी आबादी गरीब है, गरीबों की संख्या 26.93 करोड़ है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में 21.65 करोड़ एवं शहरी क्षेत्र में 5.28 करोड़  गरीब हैं.

दुनिया में भूखे लोगों वाले 79 देशों की सूची में भारत 75 वें नंबर पर है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक 2012 में भारत में 21.7 करोड़ लोग कुपोषित थे, सिर्फ इतना ही नहीं पाँच साल से कम उम्र के करीब आधे बच्चे कुपोषित है और यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है.

इसके बाद भी कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि भारत में सरकारी योजनाओं के दम पर गरीबी कम हुई है. आज के समय में 27 और 33 रूपए में क्या आता है, पिछले दिनों माननीय सांसद राशिद मासूद और राजबब्बर ने तो यहां तक कहा कि दिल्ली और मुंबई में 5 और 12 रूपए में भरपेट भोजन मिलता है तो राहुल गाँधी गरीबी को मानसिक अवस्था बताते हैं.

क्या कभी उन्होंने यह सोचा की आज के समय में पाँच रूपए में एक कप चाय नसीब नहीं तो भोजन कहां से मिलेगा, खुद तो ये लोग एक दिन के भोजन पर 7500 रूपए खर्च करते है और लोगों को गरीब न कहलाने को बोलते है.

रही बात खर्च के आधार पर गरीबी को नापने की तो जरुरी चीजों की कीमतें लगातार बढ़ती है जब इन वस्तुओं के मूल्य बढेंगे और आमदनी जस की तस रहेगी तो जाहिर सी बात है गरीबों की संख्या भी बढ़ेगी.

राष्ट्र के 70 करोड़ लोगों के जीवनयापन से जुड़े सवाल को चंद राजनेता लोग मुद्दा बनाकर अपना फायदा उठाते हैं. टिप्पणी करते समय ये लोग अपनी मर्यादा को पार क्यों करते है?

आम जन के समझ से परे है कि हरियाणा के झज्झर में 2009 में बरबाद हुए फसलों के मुआवज़े के रूप में किसानो को 2 और 3 रूपए के चेक दिए गये, सरकार आखिर इससे क्या साबित करना चाहती है. प्रशासन का कहना है कि लोगों को उनकी बरबाद फसल के अनुपात से मुआवज़ा दिया गया है.

आखिर ये लोग क्या साबित करना चाहते हैं. गरीबी न हटा सको तो कम से कम गरीबों का मजाक तो मत उड़ाओ. अब तो ऐसा लगता है भारत में गरीब कहलाना ही शर्म की बात है                                                      सुगंधा  झा                                                                                                                                              पूर्व प्रकाशित :http://topnewsindia.com/

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