Sunday 1 September 2013

मिड डे मील योजना

मिड डे मील योजना के नाम पर बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ होता है, जबकि यह योजना काफी समय से चली आ रही है। जिसमें की बारह लाख स्कूलों में करीब साढ़े दस करोड़ बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाता है।
केंद्र सरकार इस योजना में करीब पंद्रह हज़ार करोड़ खर्च करती है, इसे बनाने के लिए सताईस लाख रसोएये  काम करते हैं। केंद्र सरकार की इस योजना को सफल बनाने के लिए राज्य की सरकारों को पूरा धयान देना चाहिये, क्योंकि ये उनकी ज़िम्मेदारी है। 

पिछले दिनों बिहार के छपरा में मिड डे मील खाने से तेईस बच्चों की मौत हुई, और पहले भी कई बार पढने और सुनने में आया है, कि मिड डे मील में ख़राब भोजन परोसा गया है, जिसे खाने के बाद बच्चे बीमार हुए हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं ,पहला तो यह की जो कर्मचारी खाना पकाते हैं, उनको कम वेतन मिलता है, जिससे की वह बेमन से काम करते है, इसलिए रसोईयों की तन्खा बढाई जाये ,दूसरी वजह कर्मचारियों के पास ज्ञान का अभाव है इसलिए वे कीटनाशक के डिब्बे का इस्तेमाल खाना बनाने में कर गये ,ऐसे में उन्हें खाना बनाने के तौर तरीके बताये जाये ,,जहाँ खाना बनता है और जिन बर्तनों में पकता है वहा पूरी साफ सफाई का धयान रखा जाये ,,,तीसरा कारण यह है क़ि  हमारे यहा सामाजिक निगरानी की व्यवस्था नहीं है स्थानीय लोंगो की भागीदारी इसमें होनी चाहिए। सामान से लेकर खाना बनाने और परोसने तक की ज़िम्मेदारी एक निरीक्षक अधिकारी की मौजूदगी में हो। जो वस्तुओं की जाँच परख कर मिड डे मील तैयार करवाए। क्योंकि बच्चें देश का भविष्य होते हैं इनकी जान के  साथ खिलवाड़ उचित नहीं हैं।
--सुगंधा झा

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